गढ़वाल विश्वविद्यालय में हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की जयंती पर भव्य संगोष्ठी
गढ़वाल विश्वविद्यालय में हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की जयंती पर भव्य संगोष्ठी
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कम शब्दों में कहें तो, हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की जयंती के उपलक्ष्य में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया। यह कार्यक्रम चौरास परिसर के एकेडमिक एक्टिविटी सेंटर में सुसजित तरीके से संपन्न हुआ। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की कविताओं, उनके साहित्यिक योगदान और सांस्कृतिक प्रभाव पर चर्चा करना था।
संगोष्ठी का महत्व
इस कार्यक्रम में विभिन्न प्रतिष्ठित विद्वानों, साहित्यकारों और छात्रों ने भाग लिया। वक्ताओं ने बर्त्वाल की विविध कविताओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि बर्त्वाल का साहित्य प्राकृतिक सौंदर्य, पहाड़ी जीवन और भारतीय संस्कृति का अद्भुत मिलान है। उनकी कविताएँ केवल साहित्यिक रचनाएँ नहीं हैं, बल्कि पहाड़ी समाज को एक नई पहचान देने वाली जीवंत अभिव्यक्तियाँ हैं। आज भी, उनकी रचनाएँ लोगों के दिलों में ताज़गी लाती हैं।
विशेष वक्ता और उनके विचार
इस संगोष्ठी में हिंदी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर सुलक्षणा देवी ने बर्त्वाल की कविताओं की विशिष्टताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख किया कि बर्त्वाल की कविताएँ न केवल सौंदर्य का जश्न मनाती हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी उजागर करती हैं। उनके लेखन ने पहाड़ी संस्कृति की पहचान को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बल दिया है।
संगोष्ठी में युवा कवि रितु शर्मा ने भी अपने विचार साझा किए और कहा, "आज की युवाओं को बर्त्वाल की कविताओं से नई प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। उनकी सरलता और गहराई, दोनों ही हमें सिखाती हैं कि सच्चा भावनात्मक अनुभव क्या होता है।"
समापन विचार
संगोष्ठी के समापन में, विभाग के प्रमुख ने सभी वक्ताओं और उपस्थित छात्रों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर ध्यान आकृष्ट किया कि इस तरह के आयोजन न केवल राष्ट्रीय साहित्य के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह नए विचारों और रचनात्मकता को भी जन्म देते हैं।
इस तरह के आयोजन नियमित रूप से किए जाते रहेंगे ताकि आने वाली पीढ़ी भी हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की रचनाओं से प्रेरित हो सके और उनके साहित्य को आगे बढ़ा सके। ऐसे कार्यक्रम न केवल साहित्य का संरक्षण करते हैं बल्कि यह नई रचनात्मकता को भी उजागर करते हैं।
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