विजिलेंस विभाग पर सूचना आयोग में फर्जी SOP पेश करने का आरोप, न्याय प्रक्रिया में बाधा का मामला दर्ज

उत्तराखंड राज्य सूचना आयोग में विजिलेंस विभाग पर फर्जी दस्तावेज़ पेश करने और SOP की जानकारी छुपाने का आरोप लगा है। आयोग से न्याय प्रक्रिया में बाधा के आरोपों की जांच की मांग की गई है।विजिलेंस विभाग पर उत्तराखंड सूचना आयोग में SOP के नाम पर फर्जी दस्तावेज़ पेश करने का आरोप, न्यायिक प्रक्रिया में बाधा के लिए जांच की मांग।

Jul 17, 2025 - 03:36
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विजिलेंस विभाग पर सूचना आयोग में फर्जी SOP पेश करने का आरोप, न्याय प्रक्रिया में बाधा का मामला दर्ज
उत्तराखंड राज्य सूचना आयोग में विजिलेंस विभाग पर फर्जी दस्तावेज़ पेश करने और SOP की जानकारी छुपाने का आरोप लगा है। आयोग से न्याय प्रक्रिया में बाधा के आरोपों की जांच की मांग की गई है।विजिलेंस विभाग पर उत्तराखंड सूचना आयोग में SOP के नाम पर फर्जी दस्तावेज़ पेश करने का आरोप, न्यायिक प्रक्रिया में बाधा के लिए जांच की मांग।

देहरादून, 16 जुलाई 2025
उत्तराखंड के एक संवेदनशील मामले में राज्य सूचना आयोग के समक्ष विजिलेंस विभाग पर झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करने और न्याय प्रक्रिया को गुमराह करने का गंभीर आरोप लगा है। आरोपों के अनुसार, विभाग ने आयोग द्वारा मांगी गई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की वैध प्रति के स्थान पर एक अवैध व अप्रमाणित प्रस्तावित दस्तावेज़ सौंपा, जिससे पूरी सुनवाई की दिशा प्रभावित हुई।

यह मामला तब सामने आया जब आयोग ने विभाग से गोपनीय निरीक्षण के लिए SOP प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। विभाग ने जो दस्तावेज़ आयोग को सौंपा, वह बाद में जांच में केवल एक प्रस्ताव (Proposal) निकला, न कि विधिक रूप से लागू SOP। यह कृत्य सूचना के अधिकार अधिनियम एवं भारतीय न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध माना जा रहा है, जिससे आयोग की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हुई।

इस मामले में आयोग से यह अनुरोध किया गया है कि वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 380 के तहत प्रारंभिक जांच आरंभ करे, और यदि प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध होता है तो इसे संबंधित न्यायालय को सौंपा जाए। इसके अतिरिक्त यह भी मांग की गई है कि विभाग के द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव दस्तावेज़ से संबंधित समस्त रिकॉर्ड्स को संरक्षित किया जाए, ताकि साक्ष्य से छेड़छाड़ न हो सके।

विभाग पर आरोप है कि उसने न केवल RTI अधिनियम की धाराओं का उल्लंघन किया, बल्कि एक फर्जी दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सूचना आयोग जैसी न्यायिक संस्था को गुमराह किया, जिससे मामले की निष्पक्ष सुनवाई बाधित हुई। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार का कृत्य भारतीय न्याय संहिता की धारा 225, 228, 231, 253, 254 आदि के तहत गंभीर अपराध माना जाता है, जो किसी भी न्याय प्रक्रिया की पवित्रता पर सीधा हमला है।

गौरतलब है कि विजिलेंस विभाग राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी है, और यदि ऐसा विभाग खुद ही फर्जीवाड़े में लिप्त पाया जाता है, तो यह राज्य के प्रशासनिक तंत्र और जनता के विश्वास पर गहरा आघात है। यह मामला अब केवल सूचना के अधिकार तक सीमित न रहकर एक संवैधानिक और नैतिक प्रश्न बन गया है — क्या जांच एजेंसियां खुद को कानून से ऊपर मान सकती हैं?

राज्य सूचना आयोग से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस मामले में त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही करते हुए दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कदम उठाए, ताकि लोकतांत्रिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही की भावना को पुनः स्थापित किया जा सके।

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