नैनीताल महोत्सव: मां नंदा सुनंदा के जयकारों से गूंजा सरोवरनगर, 123वें महोत्सव का उद्घाटन

नैनीताल महोत्सव: मां नंदा सुनंदा के जयकारों से गूंजा सरोवरनगर, 123वें महोत्सव का उद्घाटन
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कम शब्दों में कहें तो, नैनीताल की सरोवर नगरी में मां नंदा सुनंदा के जयकारों के साथ 123वें नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत हुई। यह आयोजन ना केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रदर्शित करता है।
महालक्ष्मी की अनुकंपा से प्रारंभ हुआ महोत्सव
श्रीराम सेवक सभा में विधिवत पूजा अर्चना और दीप प्रज्वलन से 123वें नंदा देवी महोत्सव का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर मातृ शक्ति की आराधना के लिए भक्तों की एक बड़ी संख्या एकत्र हुई। अनेक भक्तों ने इस महोत्सव में शामिल होने के लिए दूर-दूर से यात्रा की। इस महोत्सव के आरंभ होते ही नैनीताल शहर भक्ति गीतों और पूजा-अर्चनाओं से गूंज उठा।
धार्मिक जुलूस और भक्ति गीतों की छटा
इस महोत्सव का एक प्रमुख आकर्षण धार्मिक जुलूस था, जिसमें स्थानीय लोग भक्ति गीत गाते हुए शामिल हुए। रंग-बिरंगे परिधानों में सजे लोग नंदा देवी की शोभा यात्रा में शामिल हुए, जिससे पूरे शहर का माहौल भक्तिमय हो गया। आयोजकों ने भक्ति के इस माहौल को और बढ़ाने के लिए विशेष व्यवस्था की थी।
संस्कृति और आस्था का मिलन
नंदा देवी महोत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर वर्ष यह महोत्सव न केवल आस्था को बल देता है, बल्कि नैनीताल की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का कार्य भी करता है। इसकी जुड़ाव के कारण स्थानीय युवाओं में भी इस महोत्सव की तैयारी के प्रति एक उत्साह देखने को मिलता है।
महिलाओं की भूमिका
इस महोत्सव में महिलाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है। महिलाएं मां नंदा की पूजा-अर्चना में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। इस साल भी महिलाओं ने विशेष रूप से अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभाया और चारों ओर भक्ति का संदेश फैलाया।
प्रदर्शनी और स्थानीय हस्तशिल्प
नंदा देवी महोत्सव के दौरान स्थानीय हस्तशिल्प और सांस्कृतिक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। इसमें स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार की गई वस्तुएं प्रदर्शित की गईं। यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, बल्कि नई पीढ़ी को स्थानीय कला और संस्कृति से जोड़ने का भी कार्य करता है।
समापन और उद्बोधन
नंदा देवी महोत्सव का समापन हर साल भव्य तरीके से किया जाता है। यह न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सद्भाव और एकता का भी प्रतीक है। इस महोत्सव के अंतर्गत अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहां स्थानीय लोग एकजुट होकर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का सम्मान करते हैं।
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टीम यंग्सइंडिया, प्रियंका शर्मा
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